आंकड़ों को गिनते गिनते
हुम भी उनमें जुड़ गए
राहें लम्बी हो गईं
कुछ मोड़ थे जो गुज़र गए
अब तक क्या पाया क्या खोया
इसका अब कोई मलाल नहीं
ज़िन्दगी के कई लम्हे
हाथों में रेत से बिखर गए
आंकड़ों को गिनते गिनते
हुम भी उनमें जुड़ गए
राहें लम्बी हो गईं
कुछ मोड़ थे जो गुज़र गए
दो ग़ज़ की दूरियों को नापते
न जाने कितनी शामें और सहर गए
इल्म कर मेरे हाल का ग़ैर तो रूठे ही
कुछ अपने भी मिलने से मुकर गए
गुमाँ था ख़ूब अपनी तबियत पे
भूल गए कि सांसें किराये की हैं
कितना माँग कर लाए थे मालूम नहीं
हिसाब करते सभी ख़ाते बिगड़ गए
आंकड़ों को गिनते गिनते
हुम भी उनमें जुड़ गए
राहें लम्बी हो गईं
कुछ मोड़ थे जो गुज़र गए
बुरा वक्त है शायद टल ही जाए
फिर भी दिमाग़ के पाँव अकड़ गए
कैफ़ियत ऐसी ही है आजकल
कि अक्ल के घुटने टेक ठहर गए
आए थे दुनिया में ख़ाली हाथ
पर यादों का ख़ज़ाना कमाया है
उन्हें किसके हवाले करें ये सोच के
न जाने क्यों पूरी तरह ठिठुर गए
आंकड़ों को गिनते गिनते
हुम भी उनमें जुड़ गए
राहें लम्बी हो गईं
कुछ मोड़ थे जो गुज़र गए
- शैलेश, 30 अक्टूबर 2020